विभागीय भंडार क्या होता है:-
विभागीय भंडार से अभिप्राय एक ऐसी पद्धति से है जिसके अंतर्गत एक ही दुकान को अनेक विभागों में बांट दिया जाता है। प्रत्येक विभाग कुछ विशेष वस्तुओं का विक्रय करता है। इस प्रकार कुल मिलाकर सभी विभागों से ग्राहकों की जरूरत पूरी हो जाती है, उन्हें अन्य दुकानों पर नहीं जाना पड़ता है। इन सभी विभागों का प्रबंध एवं संचालन एक ही व्यक्ति या संस्था के हाथ में होता है।
विभागीय भंडार की विशेषताएं:-
एक ही छत के नीचे अनेक दुकानें होती है।
इनमें सभी प्रकार की वस्तुएं उपलब्ध होती है।
ये प्राय: बड़े नगरों में स्थित होते हैं।
ग्राहकों को अनेक निशुल्क सेवाएं प्रदान की जाती है।
इनमें कुशल विक्रेता कार्य करते हैं।
प्रत्येक विभाग के लिए पृथक प्रबंधक होता है।
इनमें अच्छी गुणवत्ता वाली ही वस्तु बिकती है।
विभागीय भंडार की उत्पत्ति:-
विभागीय भंडारों का जन्म 1852 ई. मे फ्रांस में हुआ था। फ्रांस में सर्वप्रथम बोल मार्के तथा लुर्वे नामक दो विभागीय भंडारों की स्थापना हुई थी।
विभागीय भंडार की स्थापना:-
एक सफल विभागीय भंडार की स्थापना करने के लिए हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:-
स्थिति:- विभागीय भंडार की स्थापना के समय सर्वप्रथम ऐसे नगर या शहर का चुनाव किया जाना चाहिए जो आधुनिकता से प्रेरित हो। इसके बाद शहर में धनी लोगों की आबादी के आसपास इसकी स्थापना की जानी चाहिए।
सुविधाएं:- विभागीय भंडार के लिए एक विशाल भवन होना चाहिए ताकि उसमें अनेक विभाग बनने के साथ-साथ ग्राहकों के लिए कुछ सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सके। इन सुविधाओं में मुख्यत: विश्राम गृह, डाकघर, टेलीफोन, तारघर, वाचनालय, जलपान गृह आदि आते हैं।
सजावट:- विभागीय भंडार के विभिन्न विभागों की अलग-अलग तरीके से सजावट की जानी चाहिए। भवन को अंदर और बाहर दोनों जगह से सजाना आवश्यक होता है। बाहर की सजावट ऐसी होनी चाहिए जो ग्राहक को आकर्षित कर सके। ग्राहकों में अधिक रूचि पैदा करने के लिए मनोरंजन का विशेष प्रबंध होना चाहिए।
क्रय एवं विक्रय पद्धति:- सभी विक्रय विभागों द्वारा आवश्यकतानुसार वस्तुओं के आदेश विक्रय प्रबंधक के माध्यम से क्रय प्रबंधक को भेज दिए जाते हैं। क्रय प्रबंधक माल का आदेश देता है तथा जब माल भंडार में आ जाता है तो आदेश से मिलाकर जांच की जाती है। इसके बाद माल बिक्री के लिए संबंधित विभागों में भेज दिया जाता है।
नगद विक्रय के लिए विभिन्न विक्रयकर्ता ग्राहकों को दो प्रतियां कैश मेमो की देते है। इनमें से एक प्रति रोकड़िया भुगतान के समय रख लेता है तथा दूसरी प्रति पर भुगतान कर दिया गया शब्द लिखकर ग्राहक को दे दी जाती है। इसके साथ ही एक टोकन भी ग्राहक को दिया जाता है। दुकान से बाहर जाते समय ग्राहक टोकन द्वारपाल को दे देता है और अपना सामान वहां से प्राप्त कर लेता है। विभागीय भंडार पद्धति में उधार विक्रय की प्रथा ना के बराबर है।
कर्मचारियों की नियुक्ति:- इस कार्य के लिए कर्मचारी नियुक्ति प्रबंधन रखा जाता है। कर्मचारी प्रबंधन को देखना पड़ता है कि प्रत्येक विभाग के लिए योग्य कर्मचारी नियुक्त किए जाएं और आवश्यकता पड़ने पर उनके प्रशिक्षण का प्रबंध भी किया जाए।
विभागीय भंडार के लाभ:-
बड़े पैमाने पर व्यापार की मितव्ययिताएं:- विस्तृत व्यापार होने की कारण थोक व्यापार के सभी लाभ विभागीय भंडार को भी प्राप्त होते हैं; जैसे- यातायात व्यय में कमी व आदेश देने में मितव्ययिता आदि।
वशिष्टि करण के लाभ:- विभागीय भंडार में अनेक कुशल व प्रशिक्षित प्रबंधकों की नियुक्ति की जाती है। यह सभी अपने- अपने कार्य में निपुण होते हैं; जैसे- क्रय प्रबंधक को क्रय की पूरी जानकारी रहती है और वह कम से कम मूल्य पर अच्छी वस्तुएं प्राप्त करने में सफल रहता है।
केंद्रीय स्थिति:- विभागीय भंडार नगर के सबसे लोकप्रिय स्थान पर स्थापित किए जाते हैं। अतः: अधिक से अधिक लोग उनकी ओर आकर्षित होते हैं। इससे बिक्री में वृद्धि होती है।
विज्ञापन में सरलता:- एक बड़ी संस्था होने के नाते विभागीय भंडार आधुनिक विज्ञापन प्रणालियों को अपना सकते हैं। ऐसे विज्ञापन पर कुल व्यय तो अधिक होता है लेकिन प्रति विभाग व्यय बहुत कम होता है।
माल कि घर पर सुपर्दगी:- विभागीय भंडार ग्राहकों के घर पर माल निशुल्क पहुंचाने की व्यवस्था भी करते हैं। कभी-कभी तो ग्राहकों के टेलीफोन करने के मात्रा से ही वस्तुएं घर पहुंच जाती है। सभी कर्मचारी कुशल होने के कारण हर कार्य शीघ्रता और मितव्ययिता से होता है।
क्रय सुविधा:- विभागीय भंडार में हर किस्म और मुल्य की वस्तुएं उपलब्ध रहती है। हर वस्तु कई गुणों और विकल्पों में होने के कारण ग्राहक मनपसंद वस्तु खरीद सकते हैं।
सेवा तत्व:- विभागीय भंडार की स्थापना का मूल उद्देश्य ग्राहकों की सेवा की ओर अधिक ध्यान और लाभ की ओर कम ध्यान देना होता है। विभागीय भंडार के भवन में अनेक ऐसी सेवाएं प्रदान की जाती है जिनका वस्तुओं के विक्रय से कोई संबंध नहीं होता है; जैसे- कि डाक व तार की सुविधा, टेलीफोन की सुविधा, विश्राम गृह आदि की सुविधा।
विक्रय में वृद्धि:- एक बड़ी व्यापारिक संस्था होने के कारण विज्ञापन के आधुनिक साधन जैसे:- समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन आदि का प्रयोग कर सकती है। इन पर अधिक व्यय होते हुए भी यह संस्थाएं इन को अपनाकर बहुत लाभ उठाती हैं। इन साधनों से विक्रय में दिन-प्रतिदिन बढ़ोतरी होती है।
ठगे जाने का भय नहीं:- विभागीय भंडार की साख बहुत होती है और अपनी साख के अनुरूप हीं ये अच्छी वस्तुएं रखते हैं। इन पर ग्राहकों का विश्वास बढ़ता ही जा रहा है। यह विश्वास इन की लोकप्रियता में और अधिक सहायक सिद्ध होगा।
विभागीय भंडार के दोष:-
अत्याधिक पूंजी:- एक बड़ी फुटकर व्यापारिक संस्था होने के कारण इन्हें अत्याधिक पूंजी की आवश्यकता होती है, क्योंकि इन्हें विशाल भवन खरीदने, महंगे विज्ञापन करने व अन्य सुविधाएं प्रदान करने की आवश्यकता होती है। प्रायः इनका निर्माण संयुक्त पूंजी ने कंपनियों द्वारा ही किया जाता है। अधिक पूंजी की आवश्यकता के कारण ही भारत में विभागीय भंडार अधिक विकसित नहीं हो पाए हैं।
साधारण ग्राहकों से दूर:- ये संस्थाएं प्रायः धनी लोगों की बस्तियों में स्थापित की जाती है। जिसके कारण साधारण उपभोक्ता इनकी सेवाओं का लाभ नहीं उठा सकता है।
परिचालन व्ययो में वृद्धि:- इनको चलाने में परिचालन व्यय बहुत अधिक होते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि यह ग्राहकों की सेवाओं पर अधिक ध्यान देते हैं और कई बार विज्ञापन पर भी आवश्यकता से अधिक व्यय हो जाता है। अपनी साख को बनाए रखने के लिए हानि पर व्यापार चलाना पड़ता है।
मांगी वस्तुएं:- विभागीय भंडार का उद्देश्य धनी लोगों की सेवा करना माना जा सकता है क्योंकि यह बहुत महंगी वस्तुएं रखते हैं जिनको केवल धनी व्यक्ति ही खरीद सकते हैं।
व्यक्तिगत ध्यान का अभाव:- व्यापार के वास्तविक स्वामी और ग्राहकों के मध्य अनेकों कर्मचारी आ जाते हैं। जिसके परिणाम स्वरूप ग्राहकों की शिकायतें एवं सुझाव उन तक नहीं पहुंच पाते हैं। इसके विपरीत एक छोटा व्यापारी अपने ग्राहकों से अच्छा संबंध स्थापित कर लेता है।
साख सुविधाओं का अभाव:- व्यापार के स्वामियों का व्यक्तिगत संबंध न हो सकने के कारण ग्राहक साख सुविधा से वंचित रहते हैं।
सामाजिक भेदभाव:- विभागीय भंडार में धनी ग्राहकों की ओर अधिक ध्यान दिया जाता है। यह संस्थाएं कमजोर वर्ग के लोगों की पहुंच से बाहर होती हैं और यदि कभी कोई ऐसा व्यक्ति चला भी जाए तो उसकी और कोई ध्यान नहीं दिया जाता है।
भारत में विभागीय भंडार:-
विभागीय भंडार के उद्देश्य से स्पष्ट हो जाता है कि यह धनी लोगों के लिए बनाए जाते हैं और भारत में धनी लोगों की बहुत कमी है। भारत में इनका विकास कुछ बड़े नगरों में ही हो सका है जबकि विदेशों में पिछले कुछ वर्षों में इनका विकास बहुत अधिक हुआ है। निंबा मध्य श्रेणी के लोग छोटे फुटकर व्यापारियों से ही व्यापार करना पसंद करते हैं, क्योंकि वहां उन्हें वस्तुएं सस्ती मिल जाती है। जनसाधारण के लिए समय की जगह मुद्रा अधिक मूल्यवान है। एक ही स्थान पर सभी वस्तुएं उपलब्ध हो जाएंगी यह उनके लिए कोई विशेष आकर्षण की बात नहीं है।
हमारे देश में कुछ प्रमुख विभागीय भंडारों के नाम:-
Mumbai:- Whiteway- Laidlaw, Shahkari Bhandar, Century Bazar, Apna Bazar.
Chennai:- Military Departmental store .
Kolkata:- Kamalalaya Stores Ltd.
Delhi :- Super Bazar and Janki Das.
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